राजस्थान की धरती पर आसमान से गिरते गोलों (उल्का पिंड) के पहली बार CCTV कैमरे में कैद होते ही दुनिया भर में हलचल मच गई। 3 जनवरी को हुई इस रोमांचक घटना के बाद वैज्ञानिकों की निगाहें नागौर के बड़ायली और उसके 40 किलोमीटर दायरे के 15 गांवों में टिकी हैं। ISRO टीम इसका रहस्य खोजने में जुटी है।
राज्य में अब तक 21 उल्का पिंड गिरे हैं। इन पत्थरों में जीवन व ब्रह्मांड से जुड़े कई राज छिपे हैं और इनकी कीमत करोड़ों में है। साल 2000 के बाद अब तक 6 अलग-अलग प्रकार के उल्का पिंडों की पहचान राजस्थान में की गई है।
उल्का पिंड को वैज्ञानिक देते हैं नाम
एक बार रिसर्च पब्लिश होने के बाद उल्का पिंड की पुष्टि हो जाती है। इससे उस उल्का पिंड का नामकरण भी कर दिया जाता है। उल्का पिंडों का वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है। कुछ पिंड लोहे, निकल या मिश्र धातुओं से बने होते हैं। कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर जैसे होते हैं।
पहले वर्ग वालों को स्टोनी, दूसरे वर्गवालों को आयरन उल्का पिंड कहते हैं। कुछ पिंडों में मैटेलिक और केलेस्टियल पदार्थ समान मात्रा में पाए जाते हैं। उन्हें स्टोनी आयरन उल्का पिंड कहते हैं।
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