भारत ने रद्द की सिंधु जल संधि, जाने क्यों ये नदियाँ भारत-पाकिस्तान के लिए जरूरी ?

 
भारत ने रद्द की सिंधु जल संधि, जाने क्यों ये नदियाँ भारत-पाकिस्तान के लिए जरूरी ?

Indus Water Treaty: पहलगाम आतंकी हमले के बाद बुधवार को भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को रद्द कर दिया। भारत ने पाकिस्तान के साथ 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। 

इसका कारण पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बताया गया है। यह निर्णय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के अगले दिन लिया गया, जिसमें 26 भारतीय और विदेशी पर्यटकों की जान गई।

सिंधु जल संधि क्या है?

यह संधि 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी। इसमें विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।

संधि के अनुसार भारत को पूर्वी नदियों रावी, ब्यास, सतलुज का अधिकार मिला। जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब का अधिकार मिला। दोनों देशों को सीमित तरीके से एक-दूसरे की नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।

क्या ये नदियाँ वर्षा से भरती हैं?

नहीं, सिंधु, झेलम और चिनाब जैसी नदियाँ मुख्यतः ग्लेशियरों से पिघलने वाले बर्फ से भरती हैं। वर्षा का योगदान कम होता है, खासकर मानसून के दौरान। इस वजह से ये नदियाँ जलवायु परिवर्तन और तापमान में बदलाव के प्रति बहुत संवेदनशील हैं।

किस खेती क्षेत्र में इन नदियों का योगदान है?

सिंधु नदी के पानी का प्रयोग लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में खेती के लिए होता है। झेलम नदी का पानी जम्मू-कश्मीर की घाटी में चावल, गेहूं, फल की खेती में सहायक होता है। वहीं, चिनाब नदी पंजाब में फिरोजपुर, अमृतसर, लुधियाना जैसे क्षेत्रों में गेहूं, चावल और गन्ने की खेती को सींचती है।

भारत के पश्चिमी नदियों पर बने प्रमुख डैम

भारत संधि के नियमों के अनुसार "रन-ऑफ-द-रिवर" (प्राकृतिक बहाव को बिना रोके) प्रोजेक्ट्स बना सकता था। कुछ प्रमुख डैम हैं:

• बगलीहार डैम (चिनाब)

• सलाल डैम (चिनाब)

• दुल हस्ती प्रोजेक्ट (चिनाब)

• उरी प्रोजेक्ट (झेलम)

• किशनगंगा प्रोजेक्ट (झेलम की सहायक नदी)

यह संधि क्यों जरूरी थी?

1947 के विभाजन के बाद पानी को लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ गया था। 1948 में भारत ने पाकिस्तान की ओर पानी की आपूर्ति अस्थाई रूप से रोक दी थी। तब संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के हस्तक्षेप से यह संधि बनी। यह संधि 4 युद्धों और राजनीतिक तनावों के बावजूद बनी रही, लेकिन अब टूट रही है।

इस फैसले के पाकिस्तान पर प्रभाव

पाकिस्तान की खेती सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। इसकी 23% जीडीपी और 68% ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। पाकिस्तान में जल संकट, भूजल की कमी, और खारेपन जैसी समस्याएँ पहले ही हैं। भारत द्वारा संधि तोड़ने पर पाकिस्तान में अब पानी की कमी से फसलें कम हो सकती हैं, जिससे भोजन की कमी और आर्थिक संकट आ सकता है।

भारत को क्या लाभ मिलेगा?

सिंधु संधि तोड़ने भारत को अब झेलम, चिनाब, सिंधु पर बांध और प्रोजेक्ट बनाने में कोई रोक नहीं होगी। अब भारत पानी का डेटा पाकिस्तान से साझा नहीं करेगा। पाकिस्तानी अधिकारियों के निरीक्षण का अधिकार भी खत्म हो जाएगा। रैटल प्रोजेक्ट जैसे अधूरे प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा किया जा सकेगा।

कानूनी रूप से मान्य है?

IWT एक स्थायी समझौता है और इसमें कोई “बाहर निकलने” का विकल्प नहीं है। लेकिन, Article IX विवाद सुलझाने की प्रक्रिया बताती है- जैसे:

स्थायी सिंधु आयोग

न्यूट्रल एक्सपर्ट

आर्बिट्रेशन कोर्ट

चल रहा था तनाव

जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में भारत ने संधि को संशोधित करने की आधिकारिक सूचना पाकिस्तान को दी थी। पाकिस्तान बार-बार भारत के डैम प्रोजेक्ट्स पर आपत्ति जता रहा था, जबकि वे नियमों के तहत थे।

भौगोलिक और वैज्ञानिक असर

पाकिस्तान के साथ जल संधि खत्म करने पर भारत को विकास का मौका मिलेगा, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में। लेकिन हिमालयी नदियों में ज्यादा निर्माण से पारिस्थितिक असंतुलन हो सकता है- जैसे भूस्खलन, ग्लेशियर पिघलना, आदि। वहीं, पाकिस्तान में सूखे और जल संकट का खतरा बढ़ जाएगा, विशेषकर सिंध और पंजाब प्रांत में।

आगे क्या हो सकता है?

भारत के पास अभी पानी को पूरी तरह रोकने की तकनीकी क्षमता नहीं है, पर यह एक बड़ा राजनयिक संदेश है। पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, लेकिन भारत की भागीदारी के बिना उसका पक्ष कमजोर रहेगा। यह कदम भारत की कूटनीति में बड़ा बदलाव है- जहां पहले संयम था, अब कड़ा रुख अपनाया गया है। हालांकि पानी अब भी बह रहा है, लेकिन सहयोग का पुराना प्रवाह रुक गया है।