सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की ओर से वर्ष 2014 में बनाए गए गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम को सही ठहराया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने हरियाणा सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
राज्य सरकार ने इस एक्ट के तहत हरियाणा में स्थित गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए एक अलग समिति बनाई थी। इससे पहले तक हरियाणा के तमाम बड़े गुरुद्वारों का प्रबंधन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अंडर था। इस एक्ट के जरिये सरकार ने अलग कमेटी बना दी जो राज्य के सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन कर रही है।
2014 की रिट पर सुनाया फैसला
राज्य सरकार के अलग कमेटी बनाए जाने के खिलाफ वर्ष 2014 में एसजीपीसी के मेंबर हरभजन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में हरियाणा सरकार की ओर से बनाए गए एक्ट की वैधता को चुनौती दी गई। लगभग 8 साल तक चली सुनवाई के बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच ने अपने फैसले में इस याचिका को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने याचिकाकर्ता हरभजन सिंह के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि हरियाणा सरकार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) के तहत संचालित गुरुद्वारों पर नियंत्रण हासिल करना चाहती है।
SGPC ने 2019 में दायर की रिट
हरियाणा सरकार की ओर से वर्ष 2014 में बनाए गए गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम को वर्ष 2019 में SGPC ने भी कोर्ट में चुनौती दी। SGPC ने अदालत में तर्क दिया कि राज्य विधानमंडल के पास गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए निकाय बनाने के अधिकार नहीं है। यह शक्ति संसद के पास आरक्षित थी।
इन अधिनियमों के उल्लंघन पर दी गई चुनौती
हरियाणा के कानून को सिख गुरुद्वारा अधिनियम-1925, राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम-1966 के साथ-साथ अंतरराज्यीय निगम अधिनियम-1957 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दोनों याचिकाओं को खारिज करते हुए हरियाणा सरकार के एक्ट को सही ठहरा दिया।
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