हरियाणा की धरा पर कई बार पड़े श्री गुरु तेग बहादुर जी के पावन चरण श्री गुरु आगामी 24 अप्रैल को पानीपत में भव्य राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। हरियाणा सरकार श्री गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान एवं उनके राष्ट्र के प्रति विचार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस भव्य समागम का आयोजन कर रही है, जिसमें प्रदेश के कोने-कोने से नागरिक शिरकत करेंगे। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि हरियाणा से सभी दस सिख गुरुओं के का एक विशेष नाता रहा है, क्योंकि उन्होंने कुरुक्षेत्र और लोहगढ़ की यात्रा की है। उन्होंने कहा कि आज हमारा परम कर्तव्य बनता है कि श्री गुरु तेग बहादुर जी और अन्य धार्मिक गुरुओं और संतों की शिक्षाओं, विचारधाराओं और दर्शन को समाज में, विशेष रूप से युवाओं में प्रचारित करें। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में सभी राजनीतिक दलों का भी सहयोग है। एक तरह से यह कार्यक्रम हर हरियाणवी का कार्यक्रम है। उन्होंने अपील की है कि सभी इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में जरूर पहुंचे। उन्होंने कहा कि पानीपत में इस तरह के धार्मिक समागम का आयोजन न केवल हरियाणा और देश के लिए बड़ी सफलता होगी बल्कि दुनिया भर में भी इसका संदेश जाएगा। हरियाणावासियों का सौभाग्य है कि राज्य की धरा पर श्री गुरु तेग बहादुर जी के पावन चरण कई बार पड़े। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने संगत को दिव्य ज्ञान दिया और धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित किया। जहां-जहां वे पधारे वहां उनकी याद को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए गुरुघर स्थापित हैं जो सदियों से उनकी शिक्षाओं की ज्योति का प्रकाश फैला रहे हैं और लोगों का जीवन सवार रहे हैं। खरक भूरा में सच्चे धर्म का पालन करने के लिए किया आह्वान श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 ई. को पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह गुरु के महल (श्री अमृतसर) में हुआ था। गुरु तेग बहादुर जी 1665 ई में धमतान साहिब से चलकर खरक भूरा में आए थे। यहां उन्होंने एक रात के लिए विश्राम किया। उन्होंने संगत को सच्चे धर्म का पालन करने के लिए आह्वान किया था।
यहां एक इमली का पेड़ है जिसके साथ गुरु साहिब ने घोड़ा बांधा था। यहां पर गुरु साहिब की याद में गुरुद्वारा साहिब स्थापित है। गुरु तेग बहादुर जी ने धमतान साहिब खरक भूरा से होकर खटकड़ गांव के बाहर अपना डेरा लगाया और संगतों को गुरमति का उपदेश दिया। गुरु साहिब की याद में यहां एक सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर जी गांव खटकड़ से जींद की धरती पर पहुंचे। गुरु साहिब ने इस क्षेत्र में कई कुओं और तालाबों का निर्माण करवाया। जींद शहर में गुरु साहिब की याद में आलीशान गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर जी धर्म का प्रचार करते समय गांव लाखन माजरा जिला रोहतक की भूमि पर रुके थे। वह कई दिनों तक यहां ठहरे और संगत को धर्म उपदेश दिया। गुरु साहिब ने पानी की कमी को पूरा करने के लिए इस क्षेत्र में कई कुओं और तालाब का निर्माण करवाया। दूसरी बार असम से वापस आते हुए भी गुरु साहिब ने रोहतक इलाके में धर्म प्रचार किया। यहां पर गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। रोहतक शहर में भी गुरु साहिब की स्मृति में एक स्थान है जिसका नाम माई साहिब है। यहां बाबर मोहल्ला में गुरु साहिब की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कैथल में संगत को दिया नाम बाणी का उपदेश श्री तेग बहादुर साहिब चीका से चलकर कैथल शहर में पधारे। यहां पर उन्होंने संगत को नाम बाणी का उपदेश दिया। अब यहां गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। कैथल शहर में गुरु साहिब भाई रोडा बाढ़ी की इच्छा अनुसार श्री तेग बहादुर जी कुछ दिन उनके घर पर ठहरे।
यहां पर गुरु साहिब जी सुबह-शाम दोनों समय दीवान लगाते थे। यहां गुरु तेग बहादुर की याद में एक गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर साहिब कैथल के गांव गढ़ी नजीर भी आए थे। गुरु तेग बहादुर जी करहाली से होते हुए चीका पहुंचे थे और भाई गलोरा के घर विश्राम किया था। गुरु तेग बहादुर जी ने प्रचार करते समय खानपुर (करनाल) में अपने चरण डाले थे। यहां एक पुराना किला और गुरु साहिब के समय का एक कुआं मौजूद है। नौवें गुरु साहिब कुरुक्षेत्र के कराह साहिब आए और यहां कुंए और बाग लगाने के लिए धन दिया था। यहां गुरु साहिबानों की याद में एक गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। यह स्थान कराह बस अडडा से ½ कि.मी. तथा पेहोवा से 12 कि.मी. की दूरी पर है। गुरु तेग बहादुर जी ने कुरुक्षेत्र के गांव बारना में सन 1665 ई. में चरण डाले थे। गुरु साहिब कैथल से चलकर बारना, कुरुक्षेत्र के मार्ग से धर्म प्रचार यात्रा करते हुए कीरतपुर साहिब पहुंचे। बारना गांव में गुरु तेग बहादुर साहिब के पवित्र आगमन की याद में सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। पटना साहिब से वापसी के दौरान कुरुक्षेत्र में धर्म प्रचार गांव अजराणा कलां (कुरुक्षेत्र) में श्री गुरु तेग बहादुर जी पटना साहिब से वापसी के दौरान कुरुक्षेत्र की धर्म प्रचार यात्रा के दौरान आए थे। यहां बैसाखी, गुरुपुरब तथा गुरु तेग बहादुर साहिब का शहीदी दिवस संगतों द्वारा श्रद्धा भावना से मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर जी ने थानेसर में सन 1656 में पटना साहिब जाते हुए कुछ दिन यहां ठहर कर धर्म प्रचार किया। गुरु साहिब अप्रैल 1665 ई. को धमतान साहिब से कीरतपुर साहिब जाते समय भी यहां ठहरे थे। गुरु साहिब ने यहां पर पक्के तालाब तथा कुएं बनवाए और किलानुमा धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। यहां एक सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर जी कुरुक्षेत्र से चलकर डूडी साहिब जाते हुए सलेमपुर ठहरे थे। सलेमपुर के निवासियों ने गुरु साहिब का आभार प्रकट किया और यहां गुरु साहिब के घोड़ों को कुएं से पानी पिलाया।
यह कुआं आज भी मौजूद है। गुरु तेग बहादुर साहिब गांव सलेमपुर, डूडी प्रचार दौरे के दौरान गांव मुनियारपुर पहुंचे थे। यहां रहते हुए उन्होंने संगत को गुरुबाणी के उपदेशों से अवगत कराया तथा नाम जपन, किरत करन और वंड छकने का हुक्म दिया। लखनौर साहिब में स्थापित है माता गुजरी जी का कुआं ग्रामीणों का अनुरोध स्वीकार करने पर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने गांव डूडी में चरण डाले। गांव के प्रतिष्ठित सज्जनों ने गुरु साहिब का सम्मान किया। जिस स्थान पर गुरु साहिब ने विश्राम किया आज वहां एक सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। प्रचार करते हुए श्री गुरु तेग बहादुर जी बणी बदरपुर आए थे। यहां पहले बणी गांव था, गुरु साहिब ने आकर गांव बदरपुर बसाया। गुरु तेग बहादुर जी सन् 1656 ई. में पटना साहिब जाते हुए हरनौल (यमुनानगर) आए थे। यहां गुरु साहिब के समय का एक पुराना कुआं एवं एक सरोवर मौजूद है। गुरु तेग बहादुर जी धर्म का प्रचार करते हुए सन् 1656 ई. में झीवरहेड़ी आए थे। गुरु साहिब लाडवा से यहां आए थे। दूसरी बार 1665 ई. में गुरु साहिब दोबारा इस क्षेत्र में आए थे। गुरु तेग बहादुर जी माता गुजरी जी, माता नानकी जी और सिखों के साथ पटना साहिब से होते हुए सुढल (यमुनानगर) आए थे। बुड़िया (यमुनानगर) में गुरु साहिब के आगमन के उपलक्ष्य में मंजी साहिब गुरुद्वारा सुशोभित है। सन् 1656 में कीरतपुर साहिब से पटना साहिब जाते हुए धर्म प्रचार करते समय श्री गुरु तेग बहादुर जी ताजेवाल (यमुनानगर) आए थे। यह पवित्र स्थान जगाधरी- पांवटा साहिब मार्ग पर स्थित है।
गुरु तेग बहादुर जी पटना साहिब से लौटते समय गांव भानोखेड़ी (अंबाला) परिवार सहित पहुंचे थे। इस स्थान पर गुरु तेग बहादुर साहिब ने संगतों को धर्म उपदेश दिया। गुरुद्वारा लखनौर साहिब (अंबाला) को पातशाही नौवीं और दसवीं की चरण छोह प्राप्त है। गुरु साहिब की निशानी के रूप में एक पलंग, पावे, लकड़ी की परात और गुरु तेग बहादुर साहिब द्वारा लगवाया हुआ कुआं है, जिसे माता गुजरी जी का कुआं भी कहा जाता है। पिहोवा में किए कई धर्म प्रचार दौरे अंबाला शहर में श्री गुरु तेग बहादुर जी साहिब तथा श्री गुरु गोबिंद साहिब जी के पवित्र आगमन के उपलक्ष्य में गुरुद्वारा सत संगत साहिब सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर जी धर्म का प्रचार करते हुए गांव लंगर चन्नी (अंबाला) आए थे। गुरु तेग बहादुर साहिब ने पानी और खेती की सहूलतों के लिए इलाके में कुएं लगवाए थे। इस स्थान पर गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है। गुरु तेग बहादुर जी ने पिहोवा में कई धर्म प्रचार दौरे किए और लोगों को वहमों, भ्रमों से निकाला। हरियाणा न केवल श्री गुरु तेग बहादुर जी के साथ बल्कि सभी दस सिख गुरुओं के साथ एक विशेष बंधन साझा करता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश ने अपने जीवनकाल के दौरान राज्य के लगभग हर कोने में यात्रा की है। लोगों को दुनिया के सबसे महान मानवतावादी श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन से समर्पण और बलिदान की भावना सीखने की जरूरत है।
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