पुत्रवधु कुसुम ने ससुर की जिंदगी बचाने के लिए लीवर दान कर की मिसाल कायम

 
पुत्रवधु कुसुम ने ससुर की जिंदगी बचाने के लिए लीवर दान कर की मिसाल कायम

भिवानी:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ना केवल महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक योगदान को मान्यतादेने व लैगिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, बल्कि यह दिवस विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा हासिल की गई उपलब्धियोंं को भी पहचान दिलाने का काम करता है। भिवानी सिविल जज सीनियर डिविजन जोगेंद्र सिंह की धर्मपत्नी कुसुम ने जिदंगी व मौत के बीच जूझ रहे अपने ससुर को लीवर डोनेट कर ना केवल अपने परिवार की खुशियां को जिंदा रखा, बल्कि समाज की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बनी।
      परिवार का असली अर्थ तब समझ में आता है, जब कोई अपने अपनों के लिए बलिदान देने को तैयार हो। एक ऐसा ही प्रेरणादायक मामला मूल रूप से महेंद्रगढ़ के बुच्चावास निवासी जोगेंद्र सिंह की धर्मपत्नी कुसुम का। जिन्होंने अपने ससुर की जिंदगी बचाने के लिए अपना लीवर दान कर एक मिसाल कायम की। जोगेंद्र सिंह फिलहाल भिवानी में सिविल जज सीनियर डिविजन के पद पर तैनात है। जानकारी के अनुसार करीबन सात वर्ष पूर्व कुसुम के सुसर कृष्ण कुमार लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। चिकित्सकों ने उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी, लेकिन उपयुक्त डोनर ना मिलने के कारण परिवार चिंता में था। परिवार के कई सदस्य ब्लड गु्रप या स्वास्थ्य कारणों से डोनेट करने में सक्षम नहीं थे। ऐसे में उनकी पुत्रवधु कुसुम ने अपने ससुर की जिंदगी बचाने के लिए आगे आने का फैसला किया।  
   जब कुसुम ने लीवर डोनेट करने की इच्छा जताई, तो परिवार के सदस्यों ने कहा कि यह जोखिम भरा फैसला है। लेकिन कुसुम अपने फैसले पर अडिग रही। कुसुम ने कहा कि उन्होंने मुझे बेटी की तरह अपनाया है, तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उन्हें बचाने के लिए हर संभव कोशिश करूं। कुसुम ने पिता तुल्य सुसर को लीवर देकर उन्हे नए जीवन की शुरूआत का मौका दिया। कुसुम ना केवल अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी, बल्कि परिवार के सूत्रधार बनने में भी अग्रणीय हो गई।
    लीवर देकर अपने सुसर की जान बचाने का साहसी कदम उठाकर कुसुम ने लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाने का काम किया है। कुसुम द्वारा उठाया गया यह कदम अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत है। कुसुम के इस साहसिक कदम ने समाज में एक नई मिसाल कायम की। आमतौर पर बहु को सिर्फ विवाह के रिश्ते से देखा जाता है, लेकिन कुसुम ने साबित कर दिया कि परिवार केवल खून के रिश्तों से नहीं बनता, बल्कि प्रेम, त्याग और समर्पण से बनता है।