सुप्रीम कोर्ट के 100 मीटर वाले फैसले के खिलाफ एकजुट हुए पर्यावरणविद्
भिवानी :
विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला अरावली के अस्तित्व पर मंडराते संकट को देखते हुए अरावली विरासत जन अभियान ने निर्णायक लड़ाई छेड़ दी है। पिछले कुछ दिनों में इस अभियान के सदस्यों ने दिल्ली में संसद सदस्यों से मुलाकात कर अरावली को बचाने के लिए कड़े कानूनी संरक्षण की मांग की है। यह जन अभियान 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस पर शुरू किया गया था।
पर्यावरणविदों का मुख्य विरोध सर्वोच्च न्यायालय के 20 नवंबर 2025 के उस फैसले से है, जिसमें अरावली की एक नई एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया है।
नई परिभाषा में अब केवल उसी भू-आकृति को अरावली का हिस्सा माना जाएगा जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-आकृति से कम से कम 100 मीटर हो। पीपल फॉर अरावली की संस्थापक नीलम अहलूवालिया ने इसे अरावली के लिए मृत्युदंड करार दिया है।
उनका तर्क है कि इस परिभाषा से अरावली का एक बड़ा हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएगा, जिससे खनन माफिया और रियल एस्टेट को खुली छूट मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि जब दुनिया भर की अदालतें प्रकृति को कानूनी अधिकार दे रही हैं, तब भारत में अरावली जैसी विरासत को कागजी परिभाषाओं में उलझाकर नष्ट करना दुखद है।
इस अभियान को कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी जैसे दलों का पुरजोर समर्थन मिल रहा है।
प्रियंका गांधी, दिग्विजय सिंह और दीपेंद्र हुड्डा जैसे वरिष्ठ नेताओं को सौंपे गए ज्ञापन में अरावली को महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र घोषित करने की मांग की गई है। भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राज कुमार रोत ने चेतावनी दी है कि यह फैसला लाखों आदिवासियों के जीवन को तबाह कर देगा जो चारागाहों, जल स्रोतों और जड़ी-बूटियों के लिए इन पहाडिय़ों पर निर्भर हैं। उन्होंने जमीनी स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू करने का आश्वासन दिया है।
स्टैंड विद नेचर के संस्थापक डा. लोकेश भिवानी और किसान नेता वीरेंद्र मौर ने बताया कि अरावली केवल पहाड़ नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत के लिए सुरक्षा कवच है। यह थार मरुस्थल को बढऩे से रोकने वाली एकमात्र दीवार है। यह दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान के लिए प्रमुख वॉटर रिचार्ज ज़ोन है। अरावली की पहाडिय़ां फेफड़ों की तरह काम करती हैं।
इनके नष्ट होने से वायु प्रदूषण का संकट और गहराएगा।
अरावली विरासत जन अभियान ने सरकार और संसद के सामने 100 मीटर वाली प्रतिगामी परिभाषा को तुरंत वापस लिए जाने, गुजरात से दिल्ली तक फैली पूरी 692 किमी की श्रृंखला को संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जाने, मानवीय बस्तियों और वन्यजीव क्षेत्रों के पास खनन, पत्थर तोडऩे और कचरा डंपिंग पर पूर्ण रोक लगाने,ख्निर्माण कार्यों के लिए अरावली के पत्थरों के बजाय वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा दिए जाने की मांग रखी।

