भिवानी के गांव में 45 दिनों तक चलती है होली

भिवानी जिले के गांव बड़वा में होली एक-दो दिन नहीं बल्कि करीब डेढ़ महीने तक मनाई जाती है। जिसमें हरियाणवी संस्कृति को संजोते हुए धमाल का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। गांव में डफ प्रतियोगिता होती है। जो आकर्षण का केंद्र होती है।
भिवानी के गांव बड़वा निवासी कवि डॉ. सत्यवान सौरभ ने बताया कि गांव के ऐतिहासिक झंग आश्रम में सबसे बड़ी डफ मंडली बसंत पंचमी से महोत्सव शुरू करती है। जिससे गांव का कोना-कोना जीवंत धमाल से सराबोर हो जाता है। इसी तरह बाबा रामदेव मेला मंदिर में भी होली महोत्सव अनूठे अंदाज में मनाया जाता है।
होली के दौरान मंदिर में भव्य डफ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। जिसमें उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से शीर्ष डफ और धमाल टीमें भाग लेती हैं। होली का यह उत्सव विशेष रूप से राजपूत समुदाय में खास होता है। जहां लोग भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते हुए खुशी-खुशी रंग-बिरंगे गुलाल खेलते हैं। सिवानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव बड़वा की होली काफी प्रसिद्ध है। यहां पर यह त्योहार डेढ़ महीने तक चलता है। दशकों से बड़वा में राजपूत परिवार अपने जीवंत होली उत्सव के लिए जाने जाते हैं।
बड़वा के युवा लेखक डॉ. सत्यवान सौरभ और प्रियंका सौरभ के अनुसार राजपूत परिवार बसंत पंचमी से होली मनाना शुरू कर देते हैं और यह उत्साह गणगौर तक जारी रहता है। बड़वा गांव में होली एक जीवंत त्योहार है जो विभिन्न प्रमुख स्थानों के साथ-साथ गांव के हर कोने में मनाया जाता है।
डफ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है उत्सव की शुरुआत प्राचीन झंग आश्रम से होती है, जहां सबसे बड़ी डफ मंडली बसंत पंचमी से अपना जीवंत धमाल नृत्य शुरू करती है। यह ऊर्जावान जुलूस आश्रम से अलग-अलग इलाकों में घूमते हुए पूरे गांव में फैलता है। होली का एक और आकर्षण बाबा रामदेव मेला मंदिर में मनाया जाने वाला उत्सव है, जहां एक भव्य डफ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।
विभिन्न उत्तर भारतीय राज्यों की टीमें अपनी बेहतरीन डफ और धमाल प्रस्तुतियां देती हैं। रात भर नृत्य से मनोरंजन करती हैं, जिसमें विजेता टीम को नकद पुरस्कार मिलता है। पूरा गांव धमाल नृत्य का आनंद लेने के लिए मंदिर में इकट्ठा होता है।
बसंत पंचमी से शुरू करते हैं होली उत्सव जहां त्योहार पर एकता और भाईचारे के प्रतीक गुलाल की रंगीन छटा बिखेरी जाती है। बड़वा में राजपूत परिवार बसंत पंचमी से अपना होली उत्सव शुरू करते हैं, जिसमें कई लोग डफ बजाने में भाग लेते हैं। अन्य समुदायों के लोग भी इसमें शामिल होते हैं और विभिन्न प्रकार के गीतों के साथ उत्सव को और भी शानदार बनाते हैं। फाग के दौरान, गांव के चौराहे पारंपरिक कोरड़ा मार होली के साथ जीवंत हो उठते हैं।
गुलाल तिलक व फलों की होली बनाने का रिवाज
फाग से पहले के दिन गांव बड़वा के निवासी श्रद्धापूर्वक होलिका स्थापित करने के लिए गुलिया और रोहसड़ा चौराहे पर एकत्र होते हैं। बाद में ग्रामीण होली पूजा में भाग लेने के लिए एकत्र होते हैं। शाम होते ही शुभ समय पर होलिका दहन किया जाता है।
सभी लोग उत्सव में शामिल होते हैं। बदलते दौर में गांव की सामाजिक संस्थाओं ने गुलाल तिलक और फूलों के साथ होली मनाने का एक नया रिवाज शुरू किया है। जो जल संरक्षण को बढ़ावा देता है और हानिकारक रंगों से दूर रहने का सन्देश देता है। साथ ही आधुनिक संवेदनाओं के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है।
मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया जाता है धमाल
जीवंत होली धमाल मुख्य रूप से गांव के पुरुषों द्वारा किया जाता है। जो हर गली में गूंजता है। दो व्यक्ति एक दूसरे के सामने खड़े होकर डफ बजाते हैं, बीच में एक ढोलकिया और एक झांझ बजाने वाला होता है। सभी लोग एक घेरा बनाते हैं, एक साथ खुशी से गाते हैं।
गांव के पारंपरिक सपेरे उत्सव में शामिल होते हैं, घूमते हैं और बांसुरी बजाते हैं। प्रत्येक घर से छोटे-छोटे दान प्राप्त करते हैं। जैसे-जैसे वे एक घर से दूसरे घर जाते हैं, बांसुरी और अन्य वाद्ययंत्रों की ध्वनि हवा में गूंजती है और सभी प्रतिभागी उत्साह के साथ नृत्य करते हैं। एक-दूसरे को उत्साह बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
डॉ. सत्यवान सौरभ ने कहा कि गांव बड़वा में होली वास्तव में एक उल्लेखनीय और शानदार उत्सव है। यह एक अनूठी परंपरा का प्रतीक है जो पूरे साल की थकान को दूर कर देती है। आज के समय में भी जब मनोरंजन के कई विकल्प मौजूद हैं, बड़वा में सामूहिक आनंद, कला और संस्कृति का मिश्रण हमेशा की तरह ही संजोया हुआ है।
इस गांव की एक खासियत यह है कि यहां रंग, अबीर और गुलाल का इस्तेमाल सम्मानजनक और सभ्य तरीके से किया जाता है।