बाल्मीकि ने रामायण के द्वारा श्री रामचंद्र के जीवन चरित्र को जन जन तक पहुंचाया-सतगुरु कंवर महाराज

 
बाल्मीकि ने रामायण के द्वारा श्री रामचंद्र के जीवन चरित्र को जन जन तक पहुंचाया-सतगुरु कंवर महाराज

भिवानी।

बाल्मीकि ने रामायण के द्वारा श्री रामचंद्र के जीवन चरित्र को जन जन तक पहुंचाया। उनकी बानी ऐसी अमिट छाप छोड़ गई कि युग परिवर्तनों के पश्चात भी श्री राम की मर्यादाएं हमारे जीवन को आदर्श देती हैं ।यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत को फरमाए।

हुजूर महाराज ने संगत को महर्षि बाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि महापुरुषों को परमात्मा के तुल्य माना गया है और उनके द्वारा रचित बानी को दिव्य बानी।जब संत महापुरुष धरा पर आते हैं तो जीव को चेताते हैं कि यह दुनिया हमारे लिए एक सराय की भांति है। इस सराय में हम सब कर्मों का भार उतारने आते हैं।कर्म का कर्जा चुकाए बिना आवागमन नहीं छूटता।

कर्मों का लेखा ही आपकी अगली यौनी को तय करता है। कर्म का लेखा केवल संत ही मिटा सकते हैं क्योंकि वो त्रिकालदर्शी है चारो युगों के ज्ञाता हैं।जो माया के चकाचौंध में अंधे होकर संतो की बानी को अनदेखा कर देते हैं वो काल के भंवर में फंसे रहते हैं। हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि संतो ने कभी किसी को कोई दुख कष्ट नहीं दिया बल्कि उन्होंने तो प्रेमा भक्ति का मार्ग ही प्रशस्त किया।बिना लग्न के भक्ति संभव नहीं है।

जो लगा रहता है वो परमात्मा के रस को पा भी जाता है। संतो ने अंतर भक्ति से जो नाम अमीरस को पकाया है उसको पाकर जीव अपना कल्याण के जाता है।

नाम भक्ति में चतुराई चालाकी नहीं चलती, इसमें तो आत्मज्ञान काम आता है।उन्होंने कहा कि संत तो बादशाहों के बादशाह है।उनको दुनियावी चीजों की आवश्यकता नहीं है।

वे कमा कर खाते हैं और स्वयं सच्चे सुर्खरू रह कर दूसरे को भी उसी राह पर डालते हैं।गुरु महाराज जी ने कहा कि बिना आपा मारे आपदा नहीं मिट सकती।आपा मरेगा लग्न से लगे रहने में। अंका बंका, सैन भक्त,पलटू,रविदास, तुलसी,दादू,कबीर,मीरा कितने ऐसे नाम है जिन्होंने सर्वदा महान कार्य किया।उन्होंने कहा कि सबसे महान काम है नाम का दान।नाम दान के महत्व को केवल रमज को समझने वाला ही जान सकता है।संत सतगुरु ज्ञान की चोट मारते हैं इस चोट के आगे जो टिक गया वो कीमत पा जाता है।

भक्ति पाखंड की नहीं है।ना माला फेरने की आवश्यकता है ना कोई क्रिया की बस अपने और परमात्मा के बीच ऐसी स्थिति बना लो कि दोनों एकसार हो जाएं।गुरु महाराज जी ने कहा कि मालिक की मौज में राजी रहो क्योंकि होगा वहीं जो परमात्मा की रजा है।