Haryana News: हरियाणा सरकार का बड़ा फैसला, ग्रामीणों को मिलेगा मालिकाना हक

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Haryana News: हरियाणा सरकार का बड़ा फैसला, ग्रामीणों को मिलेगा मालिकाना हक

हरियाणा सरकार ने समाज के कई वर्गों को बड़ी सौगात दी है। डोहलीदार (गरीब ब्राह्मण, पुजारी व पुरोहित), बूटीमार, भोंडेदार व मुकरीदार को राहत देते हुए सरकार ने उन सभी परिवारों को मालिकाना हक देने का फैसला किया है, जो सरकार द्वारा दान की गई जमीन पर 20 साल या उससे अधिक समय से काबिज हैं।

सरकार ने नियमों में संशोधन किया

बेशक यह फैसला पुराना है, लेकिन इसमें कई खामियों के कारण दिक्कतें आ रही थीं। अब सरकार ने अपने नियमों में संशोधन किया है। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने इस संबंध में संशोधित आदेश जारी किए हैं। पात्र लोगों को मालिकाना हक के लिए कलेक्टर के समक्ष आवेदन करना होगा।

जिन परिवारों को दान की गई जमीन पर काबिज हुए 20 साल पूरे नहीं हुए हैं, वे निर्धारित समय अवधि पूरी होने के बाद आवेदन कर सकेंगे। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय की मंजूरी के बाद वित्त आयुक्त राजस्व व राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से अधिसूचना जारी कर दी गई है।

पात्र परिवार कर सकते हैं आवेदन

अधिसूचना जारी होने के साथ ही अब पात्र परिवार जमीन पर मालिकाना हक के लिए कलेक्टर के पास आवेदन कर सकेंगे। मालिकाना हक मिलने के बाद वे भविष्य में जमीन किसी को भी बेच सकेंगे। निजी व्यक्तियों व संस्थाओं को दान की गई जमीन को बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा।

बता दें कि वर्ष 2014 में तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार ने एक नियम बनाकर डोहलीदारों, बूटीमारों, भोंडेदारों व मुकरीदारों को दान की गई जमीन के मालिकाना हक को अनुचित करार देते हुए कहा था कि डोहलीदार इस जमीन को खरीद या बेच नहीं सकते। ऐसी जमीन पर केवल खेती ही की जा सकती है। जब सत्तारूढ़ सरकार द्वारा विधानसभा सत्र में संशोधन विधेयक लाया गया था, तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। मनोहर लाल खट्टर ने की थी घोषणा

इसके बाद 11 दिसंबर 2022 को करनाल में आयोजित भगवान परशुराम महाकुंभ में तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर ने दोहलीदारों को करीब 1700 एकड़ जमीन का मालिकाना हक देने की घोषणा की थी और अब इस पर अमल हो रहा है।

दरअसल, पुराने समय में गरीब ब्राह्मणों, पुरोहितों और पुरोहितों को फसल बोने के लिए जमीन दान में दी जाती थी। यह जमीन पंचायती होती थी, जिस पर उनका मालिकाना हक तो नहीं होता था, लेकिन फसल बोने से मिलने वाली आय को वे खुद पर खर्च करने का अधिकार रखते थे। इस वर्ग के लोगों को दोहलीदार कहा जाता है।