भिवानी।
जब आप सतगुरु के दरबार में जाने को कदम बढ़ाते हो तभी से सत्संग प्रारम्भ हो जाता है। गुरु घर के लिए उठाया गया एक एक कदम यज्ञ के समान है। यज्ञ में उच्चारित मंत्र सम्पूर्ण वातावरण को शुद्ध करते हैं वैसे ही मन मे उठा सत्संग का विचार मात्र ही आपके आंतरिक वातावरण को शुद्ध कर देता है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाये। हुजूर कँवर साहेब जी ने कहा कि इंसान बेशक इस दुनियादारी में उलझा है लेकिन वह इस जुगत में भी रहता है कि उसे वह हेतु मिल जाये जिसके सहारे इस काल जाल से छुटकारा मिल जाये।इसका सबसे प्रभावशाली हेतु है सतगुरु।गुरु महाराज जी ने कहा कि दुनिया आज मोबाइल में उलझी है।जिसको देखो वह एस एम एस में उलझा है।
उलझो लेकिन एस एम एस होना चाइये सच्चे मन से सुमिरन। हुजूर कँवर साहेब ने फरमाया कि इंसान अपनी बर्बादी का रास्ता खुद चुनता है।उसकी हालत उस व्यक्ति जैसी है जिसके हाथ में प्रज्वलित दीपक है लेकिन फिर भी उसे अन्धकात में रास्ता नहीं सूझता। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि आज हम महापुरषो का गुणगान तो बहुत करते है लेकिन उनके बताए मार्ग पर एक कदम भी नहीं चलते। प्यासा आदमी यदि पानी पानी कहता रहे और पानी पिये नहीं तो प्यास नहीं बुझेगी। गुरु महाराज ने कहा कि चार दोष इंसान को उभरने नहीं देते।पहला दुष्चरित्र। जिसका चरित्र अच्छा नहीं वह इंसान होते हुए भी इंसानी श्रेणी में नही आता। दूसरा दोष है नशा। जो नशा करता है वह अपने जीवन का नाश करता है।तीसरा दोष मांसाहार। जो मांस खाता है वह दयावान नहीं है और बिना दया के भक्ति नहीं हो सकती।चौथा दोष जुआ खेलना।जुआरी आदमी कभी आर्थिक सम्पन्न नहीं होगा। अर्थ सारे सुखों का मूल है। खाली पेट तो भक्ति की कल्पना भी नहीं कि जा सकती। उन्होंने साध संगत को सन्देश देते हुए कहा कि घरों में प्यार प्रेम शांति रखो।मां बाप बड़े बुजुर्ग की कद्र करो क्योंकि भगवान को अगर देखना चाहते हो तो अपने माँ बाप के चेहरे में देखो।चरित्र के अच्छे बनो।परोपकार व परमार्थ का मार्ग कभी ना छोड़ो।