श्री गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व पर पानीपत में 24 अप्रैल को भव्य कार्यक्रम-मुख्यमंत्री मनोहर लाल

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सर्वोच्च बलिदान के कारण ही श्री गुरु तेग बहादुर जी को मिली ‘हिंद की चादर’ की उपाधि- मुख्यमंत्री सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व पर हरियाणा सरकार पानीपत में 24 अप्रैल को भव्य कार्यक्रम आयोजित कर रही है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी के मानवता, सद्भाव और शांति के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना है। गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म और मानवता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा दिए गए बलिदान के कारण ही उन्हें ‘हिंद की चादर’कहा जाता है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि सिख धर्म ने देश को महान गुरु दिए हैं, जिन्होंने समाज में प्रेम, समता और भाईचारे की कड़ियों को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी जब गुरु गद्दी पर विराजे उस समय देश के हालात बहुत नाजुक थे। लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा था, महिलाओं व बच्चों भी पर अत्याचार हो रहे थे और देव संस्कृति पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। ऐसे में उन्होंने अदम्य साहस दिखाते हुए धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कुर्बान कर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि गुरु जी ने यह अद्वितीय शहादत न दी होती तो आज भारत का नक्शा ही कुछ और होता। गुरुजी का यह बलिदान केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर था। इसी कारण आज उन्हें ‘हिन्द की चादर’ और ‘धर्म की चादर’ जैसे सम्मानजनक सम्बोधनों से याद किया जाता है।

निःसंदेह, ‘गुरु तेग बहादुर सी क्रिया, करी न किनहू आन’ अर्थात जो अद्वितीय पराक्रम श्री गुरु तेग बहादुर जी ने किए वह किसी अन्य ने नहीं किए। मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने ना केवल हिंदुओं को जबरन धर्मांतरण से बचाया, बल्कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों की भी बहुत मदद की। मुख्यमंत्री ने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि 25 मई, 1675 को गुरु तेग बहादुर साहिब के दरबार श्री आनंदपुर साहिब में पंडित किरपा राम दत्त के नेतृत्व में 16 पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल फ़रियाद करने पहुंचा था। उन्होंने गुरु साहिब को जबरन धर्म परिवर्तन, धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध, मंदिरों की तोड़फोड़ और जनसंहार पर विस्तार से बताया। गुरु साहिब ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वे अत्याचार को रोकने के लिए बादशाह औरंगजेब से बात करेंगे। इस बीच, गुरु तेग बहादुर साहिब 10 जुलाई, 1675 को चक्क नानकी (आनंदपुर साहिब) से भाई मतिदास, भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए। लेकिन औरंगजेब की सेना ने सभी को बंदी बना लिया और धर्म परिवर्तन से मना करने पर खौफनाक यातनाएं देकर तीनों (भाई मतिदास, भाई सती दास और भाई दयाला जी) को गुरु साहिब के सामने शहीद कर दिया, श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक पर अपना शीश कुर्बान कर दिया। श्री गुरु तेग बहादुर जी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को ना तो डराना चाहिए और ना ही डरना चाहिए। उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी।

वे हमेशा कमजोरों के रक्षक बनें। मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने आम जनता से अपील की है कि सभी पानीपत में रविवार को आयोजित किए जा रहे श्री गुरु तेग़ बहादुर के 400 में प्रकाश पर्व के आयोजन में अधिक से अधिक संख्या में पहुँचे और इस भव्य एवं एतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनें।

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